कौन थी वह ?
कहांसे आई थी ?
अजनबी फ़िर भी जानी पहचानी सी लगी ....
बस पलभर का साथ निभाकर चली गई और मुझे जीना सिखा गई .........
एक बार फ़िर मेरी जिन्दगीमें बहार बनकर आ जाओ ,
एक बार फ़िर मेरी नींदमें सपना बनकर सज जाओ ,
एक बार फ़िर परदे के पीछेसे निकलता हुआ चाँद बन जाओ ,
एक बार फ़िर मेरे अरमानोंको सहला जाओ ,
एक बार फ़िर मेरी तनहा रातोंमें सितारा बनकर चमक जाओ ,
एक बार फ़िर मेरे दिलमें धड़कन बनकर धडक जाओ ,
एक बार फ़िर मेरी तक़दीर की लकीर बन जाओ ,
एक बार फ़िर मेरी यादोंमें बस मुझे सुकूनभरी नींद सुला जाओ ,
एक बार फ़िर तुम बिन जीने के लिए तनहा छोड़ जाओ ...........
आप तो ईद का चाँद हो गयीं हैं आपसे कभी रूबरू होने का बहाना मिले!
जवाब देंहटाएंचाँद, बादल और शाम
bahut sundar ahsaas hain.
जवाब देंहटाएंभीतर की पीड़ा को बहुत सुन्दर शब्द दिए हैं।
जवाब देंहटाएंबहुत बढिया!!