1 मार्च 2009

आगोशमें आपकी महफूज़ है हम ....

चलो आज फ़िर आसमांकी आगोशमें कुछ ऐसे खोकर देखें ,
पलकोंके धागोंसे ख्वाबोंकी चादर प्यारी बुनकर देखें .....

बीते वक्तकी आगोशमें कुछ ऐसे हम समा गए थे ...
कुछ अनकहे कुछ कहे से ऐसे अफ़साने याद आने लगे थे ....

आपकी आगोशमें रहकर क्यों हम महफूज़ हो जाते है ?
ढूंढती रहती है नजरें जब आप इनसे कुछ देर ओज़ल हो जाते है .....

लब्जोको आज कलमकी आगोशमें समाना है ,
बेखुद होकर अपनी महोब्बतको फ़िर एक बार फ़िर जताना है ......

तुम्हारी तस्वीरको आज ये नजरोंसे चूम लेना है ,
तुम्हारे कोट की सिलवटोंमें खोकर उसे थोड़ा सा प्यार जताना है .......

3 टिप्‍पणियां:

  1. bahot khub likha hai aapne ache bhav ke sath achhi prastuti....

    meri nai gazal jarur padhe..


    arsh

    जवाब देंहटाएं
  2. पलकोंके धागोंसे ख्वाबोंकी चादर प्यारी बुनकर देखें .....
    तुम्हारे कोट की सिलवटोंमें खोकर उसे थोड़ा सा प्यार जताना है .......
    Prem, Shayari aur vastra-vinyas (tailoring) ka adbhut sangam hai. Badhayi.

    जवाब देंहटाएं

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