कोई कसर रखी बाकी अय जिंदगी तुने रुलानेमें ,
बस मैं ही बेशर्म हूँ जो तेरी इस अदा पर हंसती चली गई ....
ऑंखें देखती रही ख्वाब फूलोंके ,
पैर मैं तू काँटों के नश्तर बनकर चुभती रही ,
ख्वाबोने मेरे मुझे गहरी नींद जब सुला दिया ,
अय शमा !! तू क्यों रात भर रोती रही ???
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यादोंके दरख़्त पर छाई है बसंत,खुश्बूसे भरले आज अपनी सांसोंको,
कल जब परछाईं घेर लेगी हमें फिराककी,चाहतमें जियेंगे तेरे दिदारकी
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तुम्हारी तस्वीर को हमने दिलमें बसा लिया है ,
यादों को तुम्हारे साथ जिए लम्होकी गले से लगा लिया है ,
हमें प्यार तुमसे है कितना बताने की जरूरत नहीं पड़ी ,
तुमने जो हमको अपनी धड़कन बना लिया है
अच्छी रचना.
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