चलो आज मुझे मेरा आसमां दे दो ...
उड़ते रहनेकी ख्वाहिश अभी बुझी नहीं है ,
प्यास अभी एक बूंदकी बाकी रही है अभी ,
मेरे लिए ये जमीं काफ़ी नहीं
अभी तो पूरा आसमां बाकी है ...............
एक मुठ्ठीमें छुपा है मेरी
बादलके दो बूंदोंके बीच छुपकर बैठा है वह ......
भीनी महक लिए लिपटकर बैठा है बूंदोंमें
जमींमें मिटटीके दो जर्रोंके बीच सिमटा है वह ......
अपनी गोदमें एक तिनके को बिठाकर
झुला झुलाए सातवें आसमां तक वह ........
दिल के मकानमें झांक लिया तो
पलते -पकते तो कभी थकते रिश्तोंके बीच प्यार बनकर
जिंदगीको हमेशा सहलाता दीखता है वह ........
सुन्दर रचना है।बधाई।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर लिखा है...;बधाई।
जवाब देंहटाएंbehad khubsurat ehsaas aur alfaaz bhi.badhai
जवाब देंहटाएं