सुलगती सांसोसे आंखो में तपिश छा गई है ...
दिल टूटने का गुमां है ये की अश्कों की टूटने पर बंदिश आ गई ॥
आज फख्र है तुम्हारी जिंदगानी पर जो एक उम्दा मिसाल बनी ...
कायम रहेगी यहाँ की सरजमीं पर दास्ताँ जो तुने खूनसे लिखी ॥
चैनकी नींदे बख्शते रहे तुम अपनी रातोंकी नींदे कुर्बान कर ,
नत मस्तक होता है हमारा शीश अय सरहद के रखवाले ....
फिरभी जलन है एक दिल में!!
जान तक फना कर गए जिस पर ,
कुर्बानी तुम्हारी समज पाने को तख्त नशीं लोग लायक भी है ???
बुलेट प्रूफ़ बख्तर को सजाकर छाती पर रक्षकों से घिरे निकलते है बाहर ,
हमारी आजादी की रक्षा क्या इन कायरों के हाथों में है ??
अपनी तिजोरी को भरने के लिए वो तुम्हारे कफ़न भी बेच आयेंगे ,
अपने स्वार्थ की ताक पर वो तुम्हारी लाश का भी सौदा कर जायेंगे ....
बारूद के गोले भी शरमाते है जिनकी सौदेबाजी की करतूतों पर ,
क्या करे ये कलम बिचारी ?
जो अकेले में यूं कागज़ पर रो लेती है .....
हम भी मजबूर है पर क्या करें ??
तुम्हारी तरह सैनिक बनने को हमारा दिल भी करता है ,
पर मल्टीनेशनल में पगार वहां से ज्यादा मिलती है ...
क्या करे ये कलम बिचारी ?
जवाब देंहटाएंजो अकेले में यूं कागज़ पर रो लेती है .....
बेबसी है मगर इसी से होकर राह निकालनी होगी. स्वागत गांधीजी के विचारों पर आधारित मेरे ब्लॉग पर भी.
(gandhivichar.blogspot.com)
बहुत सटीक व उम्दा रचना लिखी है।
जवाब देंहटाएंगाँधीजी की पुण्य तिथि पर शत शत नमन।
बहुत बढ़िया रचना।
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