मैं सपना हूँ ॥
जो तुम्हारी आँखोंने देखा था हरदम ...
तुम खुशनसीब हो ...
तुम्हारे सपने जो साकार हो गए है ...
मैं सपना पनपता हूँ दिल के आंगनमें ...
मैं महत्वाकांक्षा हूँ ...
जिसने अभी बसेरा बना लिया है ,
तुम्हारी आँखों में अभी ....
मेरी चकाचौंध ने तुम्हे चकित कर दिया है ,
अपनी और आकर्षित किया है ,
और मैं पनपती हूँ दिमाग के मैदानमें ...
आ गए हो अब दोराहे पर तुम ,
मैं इधर जाऊं या उधर जाऊं ?
सपना आत्मा की आवाज है ...
जो कभी गुमराह नहीं करती ....
महत्वाकांक्षा दिमाग से निकलती है ...
जो आत्मा पर छा जाती है ....
सोचो अब ॥!!!
साकार हुए सपनों को सहेजना है ....
या चकाचौंध महत्वाकांक्षाकी रौशनी में गूम हो जाना है ...??
सुन्दर भावना से ओत-प्रोत रचना, पढ़कर अच्छा लगा
जवाब देंहटाएं---मेरे पृष्ठ
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hamseha ki tarah bahut sundar kavita...
जवाब देंहटाएंsapna ...sapna...sapna kaun hai ye sapna....shayad aap achha bata payen ya yu kahu ki achha bataya sapne ke baare main....but main aapni kahun to i believe in present....???
जवाब देंहटाएंbut sapne achhe hote hai.....
सोचो अब ॥!!!
जवाब देंहटाएंसाकार हुए सपनों को सहेजना है ....
या चकाचौंध महत्वाकांक्षाकी रौशनी में गूम हो जाना है ...??
क्या बात कही है....बहुत खूब।
Waah ! Bahut bahut sundar !
जवाब देंहटाएंshabd bhaav abhivyakti,sab lajawaab !