हम हमेशा यही कहते हैं की औरत को हमेशा दुसरे स्तरकी नागरिक समजा गया है .उसे पुरुष सामान हक्क नहीं मिल रहे है .इससे जुड़ी हुई समस्याओं की बात तो बहुत ही हो चुकी है पर ये समस्या क्यों सुलज़ नहीं पाती है उसकी वजह मेरी दृष्टि से ये है की :
क्या इस के लिए सिर्फ़ पुरूष ही जिम्मेदार है ? हम औरतें नहीं ?क्या कभी किसी औरत ने अपना हक़ मांगने की कोशिश भी की है ?नहीं !! आगे से जो चली आ रही चलने दो ...मैंने और आपने ये भी देखा है की कई मुश्किलों का सामना करते हुए जिस औरत्ने पुरूष वर्ग को चुनौती दी है और अपनी काबिलियत दिखाई है उसे समाजने पूरे सम्मान से उसका सही स्थान दिया ही है । झाँसी की रानी से लेकर पेप्सिकी सी यी ओ इन्द्रानूयी ही क्यों न हो ???
लिस्ट बहुत लम्बी है ...कहना सिर्फ़ इतना है की दुनिया झुकाती है झुकाने वाला चाहिए फ़िर चाहे वह पुरूष हो या स्त्री ....
शुरुआत करते है स्त्री भ्रूण हत्या से ... क्या ये भ्रूण हत्या के लिए केवल पुरुषवर्ग ही जिम्मेदार है ? स्त्री बिल्कुल बेकसूर है ? पहली बात स्त्री भ्रूण हत्या के लिए तैयार ही क्यो होती है ...घर वालों के दबाव से ? ये हमेशा सही नहीं ..ज्यादा तर पाया गया है की स्त्री ख़ुद पुत्र की लालसा लिए होती है चाहे वह सास हो ,माँ हो ,बीवी हो या बहन !!!दहेज़ के लिए जिन्दा जलाई जाने वाली लड़की किसी सास या ननद की त्रासदी का शिकार पायी जाती है ...जब वह अपने मायके में इस बात की इत्तिला करती है तो ज्यादातर माँ बाप ये मांग के आगे झुक जाते है या अब तो पति का घर ही तेरा घर है कहकर उसे वापस भेज देते है और ये काम माँ ही करती है ..जरूरत है अपने उस बेटी को पनाह दो .क़ानून की मदद लेकर लड़ लो अपने हक़ के लिए ..शुरुआत में तकलीफ जरूर होगी पर धीरे धीरे ये बड़ी जायेगी जरूर ...इस लिए अपनी बेटी को शिक्षित बनाये ,स्वावलंबी बनाये और अपने हक़ के लिए लड़ना भी सिखाये ....
अब एक और सवाल :
क्या स्त्री अपने अस्तित्व के लिए जागरूक है ? हमें अपने स्त्री होने पर गर्व होना चाहिए .बेटी को जन्म देने वाली हर माँ को तहे दिल से खुशी होनी चाहिए .और ये सबके लिए मशाल ख़ुद स्त्री को ही उठानी है ...
हमारी सामाजिक संस्थाएं जो ये काम करती है वहां के कार्यकर्त्ता क्या ख़ुद स्त्री जागृति के बारे में अपने जीवन में अमल करते है या दो दो मुखौटे भी पहनते है ? ये जानना भी जरूरी है .सरकार ने तो स्त्री पर होने वाले अत्याचारका सामना कर पाए उसके लिए कायदे बनाये है पर उनका लाभ लेने की आम औरत की हिम्मत नहीं होती ....कारन सिर्फ़ सामाजिक अस्वीकृति ???
औरत हमेशा डरती है क्योंकि वह आर्थिक रूप से स्वायत्त नहीं होती ..दूसरा कारन उसकी परवरिश ही बचपन से दुसरे दर्जे के नागरिक की तरह होती है .पुत्र और पुत्री में ख़ुद माँ ही भेद करती है ।
एक औरत दूसरी औरत का हाथ थाम लेगी तब ही स्त्री न्याय पा सकेगी । बलात्कार से उत्पीडित स्त्री की सबसे बड़ी उलाहना तो दूसरी स्त्री वर्ग से ही होती है .जहाँ उसे प्यार और साथ की जरूरत होती है ,आश्वासन की जरूरत होती है वहां पर उसे नकारा जाता है । यहाँ पर माँ बहन पड़ोसी सब मिलकर प्यार से उसके साथ खड़े होकर एक जिंदगी को मुर्जाती बचा सकते है ...
ये चर्चा बहुत लम्बी हो सकती है पर समापन की और बढ़ते हुए मैं कहूँगी :
१ मैं एक रुढिवादी परिवार से आई लड़की थी पर मैंने लंबा संघर्ष करके पोस्ट ग्रेज्युएट तक की पढ़ाई पुरी की ।
२ मेरे ख़ुद एक बेटी ही संतान है वह भी मेरी इच्छा से ही ...मेरे परिवारमें भइया के भी सिर्फ़ एक बेटी है और मेरे मायके में मेरे भाई के भी सिर्फ़ एक बेटी ही है ...क्योंकि हम सब मानते है की हमें एक संतान की जरूरत है न की बेटा या बेटी की .....
३ हमें हमारे आने वाले कल का पता नहीं होता तो हम मृत्यु के बाद के नर्क या स्वर्ग की फिकर क्यों करे ?
हम औरतें ही औरत की राह और चाह बन सकती है :
कोमल स्पर्श ,कोमल ह्रदय और कोमल भावना है मेरी पहचान जो हर कठिन कार्य को मक्खन सा मुलायम बनाकर आसानी से मंजिल तक पहुंचाने की क्षमता रखती है ....
हाँ मैं औरत हूँ : फूल से भी कोमल और वज्र से भी कठोर ...
आपकी जिंदगी की पहली साँस से आखरी साँस तक आपके साथ अलग अलग रिश्तों के रूप में मिलने वाली एक संजीवनी यानी की मैं एक औरत .....
मुझे नाज़ है अपने नारी होने पर ...
मुझे गौरव है नारीत्व का ...
गरिमा मेरे आत्मगौरव की अब बनेगी पहचान ......
बहुत अच्छा लेख है, वधाई.
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया लिखा है आपने ..
जवाब देंहटाएंएक औरत दूसरी औरत का हाथ थाम लेगी तब ही स्त्री न्याय पा सकेगी । बलात्कार से उत्पीडित स्त्री की सबसे बड़ी उलाहना तो दूसरी स्त्री वर्ग से ही होती है .जहाँ उसे प्यार और साथ की जरूरत होती है ,आश्वासन की जरूरत होती है वहां पर उसे नकारा जाता है । यही सच है ..
bahut sahi likha hai....aur ranju jee se main puri tarah sehmat hun...
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