3 जनवरी 2009

रात के आलमका नशा



रात एक जाम है अध भरा हुआ ,श्वेत पानी भरा हुआ ,
नींद उसमे घोल देती है एक नशा ,चुरा लाती है कोरे कोरे ख्वाब ......

उससे भर देती है पुरा जाम .....

कोरे कोरे ख्वाबों को भिगोती है ,
पलकें कभी अश्कों से भी नींदकी जगह भर देती है ,
अश्क कहते है कहानी कभी खुशियों की ,
कभी गहरे ज़ख्म को उधेड़ लेते है ..............

चाँद आता है और चांदनी के लेपसे ज़ख्म को भरता है ,
निंदिया रानी आंखों पर कब्जा कर लेती है तब ,
और अनकही बातें मनचाहे सजनसे भी कह देती है ..
न जाने कहानी ये कोई और जिंदगीके सफे पर कुछ देती है ......

रातके जाम को पीलो जी भरके ,नींद के आलममें जी लो जी भर
तन्हाई के छा जाने दो ख़ुद पर ,और इस रात के आलम का नशा पी लो .......

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