6 दिसंबर 2008

हमें हमारी मंझिल मिल गई.....

कई ह्सरतें लेकर ख्वाबोंकी राह पर चलते हैं,
एक अनजानी खुशीकी तलाशमें हरदम रहते हैं हम,
जानी पहचानी डगर पर तो सभी चले चलते हैं मगर,
चलो आज ये काटोंभरी कच्ची डगर पर एक नई राह बनाते हैं......
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राहों पर तुम मिले पहले मुश्किल बनकर, चलो तुम से ही हमने दोस्ती कर ली,
थोडा आगे चलकर मिले एक तेज तुफान बनकर,तेज हवा बनकर तुम्हारे साथ बह चले,
गर्दिशमें सब तारे छुप गये अंधेरा सा छाया जब, उम्मीदको दिया बनकर जलते गये,
क्योंकि तुम्हें पाना ही जिद्द थी जो हमारी, अंधेरेको चिरकर हमें हमारी मंझिल मिल गई.....========================================================

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