17 मार्च 2012

एक इश्तिहार लिखे...

जब कोई ख़ुशी हो तो शब्द बिखर जाते है ,
लगता है कोई दरख्तके ऊपर जाकर बैठ जाते है ,
जब कोई गम आता है तो निगोड़े फिर गुम जाते है ,
बेमुर्रव्त अश्कोंके साथ बहते चले जाते है .....
ये गम और ख़ुशीका नाता भी समजमें नहीं आता मुझे
अश्कोंके साथ दोनों हाथ पकड़कर चले आते है !!!!
चलो मेरे गुम गए शब्दोंके लिए एक इश्तिहार लिखे ,
" बिना पूछे चले गए हो तो लौट आओ ,
आपके बगैर मेरे कागज़ रो रहे है ,
कलम सुख गयी है ...
तुम्हे कोई डांटेगा नहीं ..कुछ भी कहेगा नहीं ...
आपकी सारी इच्छा पूरी की जायेगी ,
तुम्हारे निबंध के ग़ज़लके साथ सगाई कर दी जायेगी .....
आओ लौट आओ ...
बेइंतेहा तुम्हारी राहों में नज़र बिछाए बैठे है हम ,
बस तुम्हारे दीदारके लिए ही साँसोंको रोके रखे है हम ..."
और फिर अल्फाज़ लौट आये हँसते हँसते ...
जो मेरे पलंगके तकिये के नीचे सो रहे थे ख्वाब बनकर ...

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