13 मार्च 2012

फिर दूसरा कदम उठाया ...

जरा संभलकर एक कदम उठाया
फिर दूसरा कदम उठाया ...
सुना था हम चलने के लिए दो पांवो का इस्तमाल करते है ,
पर जमीं पर तो हर वक्त सिर्फ एक ही पड़ता है कदम .....
उस कदम को बढ़ाकर ही तो  एक मंजिलका रुख होता है ...
मंजिलकी फ़िक्र क्यों करें ???
अभी तो राहें बाकी हो तय करनी तो !!
पता नहीं किस कोने पर जाकर कौनसा मोड़ आ जाए !!!
और अनदेखी अनजानीसी वो मंजिलका मक़ाम बन जाए !!!
चलना अहम् है जिंदगीमें रुकना उसका काम नहीं ...
मंजिलकी ख्वाहिशमें क्यों बेसब्री करे हम ???
जब हर राह पर जिंदगी इंतज़ार हो कर रही !!!

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