3 मार्च 2012

एक सपनेसी तुम ...सिर्फ तुम ...!!!

कोई जुत्सजू का दामन थामकर
एक आरजूके लिबासमें
एक चाहत कसमसा रही थी ,
कब कोई राहमें खड़ा एक इंतज़ारके रूपमें
एक दरख़्तके तनेसे सट कर खड़ा
तुम्हारी   राहमें तक रहा हो
जैसे वो कोई ख्वाब कल रात मिला था
सपनोके दुशालेमें लिपटकर ....
उससे  आँखें चार होते ही झुक जाती है ,
फिर चेहरा एक ऊँगलीसे उठाकर ,
मेरी आँखोंमें  आँखें डाल उसकी निगाहें पूछती है ,
इनकारसे इकरारके इस सफ़रमें
तुम्हारे साए को थामकर
मैं भी चला हूँ तुम्हारे साथ ,
मैं भी जला हूँ शमाके साथ ,
मुझे भी प्यास है शबनमी एक बूंदकी ,
इस रेतके साहिलको भिगोती रहो
तुम एक दरिया बनकर ....
तुम्हे भी मुझसे प्यार है ही .....बस होठों पर न करती हो
शर्मसे गढ़ी गढ़ी ..यूँही एक सपनेसी तुम ...सिर्फ तुम ...!!!

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