2 मार्च 2012

ये तो कुछ बगावतसा है न !!!

रुकती है साँसे यूँही चलते चलते
तो कहते है की इस फानी दुनियाको छोड़ चले हो ,
रोज मरती इस रूह की तड़प देखो ,
ये तो जनाजेको भी तरस गयी पड़े पड़े फरस पर !!!!!
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ये दिल तो मरम्मतके लायक भी नहीं रहा अब ,
हर रोज आकर घाव इस पर लगने बेताब रहते है !!!!
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हर वक्त संभलनेकी कोशिश क्यों करे अब ???
ये वक्त अब आराम फरमाते दुनियाके तमाशेको देखने का है ..
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उसके लिए मर मरके जीया किये इसका गिला क्यों करे ?
कुसूर भी हमारा ही था जो इश्क कर लिया उसकी इजाजतके बगैर !!!

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