28 अक्तूबर 2012

वफ़ा बेवफाकी दास्ताँ होती है ??????

एक खामोशसी सरसराहट है लबों पर
कश्मकश है की ये तलबगार है मुस्कान के
या फिर उन्हें कुछ बोलनेकी इजाजत चाहिए ...
सूखे से कांपते से फडफडातेसे ये लब   .........
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अंदाज़ कुछ बयां कर न पाए भला ,
तेरी निगाहोंका सुरूर कह गया हमें सब .....
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कसमसाहटसी है ये दिलकी परतोंके भीतर ,
डरते है कहीं आंसुओंका सैलाब न आ जाए .......
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मुखौटे पहनकर नाचते हुए ये सफ़ेद पोश ,
रातकी कालिखोंमें उनका नकाब उतरता है .....
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सच बोलना कडवा होता है ,सच सुनना भी ,
फिर क्यों इजहारे मोहब्बतमें  भी वफ़ा बेवफाकी दास्ताँ होती है ??????

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