19 फ़रवरी 2012

न मेरा निशान कहीं कोई..

आज दो दिनोंसे नि:शब्दसी मैं ,
ख्यालोंके बवंडरमें उल्ज़ीसी मैं ,
दिल   और दिमागके युध्धमें हारी सी मैं ....
ये कुछ अलग अलगसी मैं ......
न वजह है न कोई गिला न शिकवा किसीसे ,
बस कर्म है सिध्धांतसे रूठा कहीं पर ,
एक द्वंद्व लिए दिल और दिमागके बीच का ,
एक समाधानको ढूंढती हुई सी मैं .......
एक डर है जिसकी वजह भी नहीं कोई ,
एक निराशासी लगी है जहाँ हारका नहीं नामोनिशां कोई ,
भरी भीड़के शहरमें मुझे तनहासा छोड़ दिया गया है ,
और उस भीड़में अपनेकी तलाश करती हुई सी मैं .....
खाली खाली हिलते हुए परदे
फिर भी  हवाका न हो वजूद कोई ,
कोई जैसे देहलीज पर आकर मुड जाता है मेरी ,
उसे फिरसे पुकारने की कोशिशसी मैं .....
न कोई तलाश हो ,
न कोई कारवां हो ,
न कहीं मेरा नाम हो ,
न मेरा निशान कहीं कोई ,
फिर भी हर जगह दिखती हुई निशानीसी  मैं ....

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