18 नवंबर 2011

एक मुखौटा पहनकर

आज चेहरे पर एक मुखौटा पहनकर निकले है ,
दिलमें ख़ुशी है
फिर भी गमको चेहरे पर सजाकर निकले है ....
आँखोंमें भरे अश्कको
अभी तो पोछा है एक पल पहले
तुमको देखकर
मुस्कुराते हुए घरके बहार निकले है .....
उस सूखेसे अश्ककी बूंदको
 गालो पर देख लिया तुमने,
हमने हंसकर कह दिया ,
बड़े दिनोके बाद मिले आँखें छलक गयी .....
तुमने शायद जाना है मुझे खुदसे भी ज्यादा ,
इस लिए कह दिया ,
मेरा इंतज़ार तो कहीं इन अश्ककी वजह तो नहीं ???
नज़रें झुका दी हमने ,
और हौलेसे कहा ,
ये बेमुर्रवत अश्क भी बेवक्त निकल आते है ....
मेरे चेहरे को अपनी ऊँगलीसे उठाकर
मेरी नज़रसे खुद की नज़र मिलाकर
पूछ बैठे तुम भी ....
इन आँखोंको तुम्हारी जूठ बोलना आया ही नहीं कभी !!!
प्यार इतना करते हो
तो पहले क्यों न बताया कभी ???!!!!

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