एक अकेलापन एक अधूरापन ,
खुदमें पूरा लगा है कभी ???
फिर भी गौरसे देखा उसे जब
मैंने महसूस किया जब
खुदसे अलग ,खुदसे जुदा .....
एक नए रूपमें
बिलकुल पाक फ़रिश्तेकी तरह
लिपटा हुआ जो सफ़ेद लिबासमें .....
लगा बेइख्तियार सा ही सही पर
वो जरुरी है मेरे लिए
मेरा अकेलापन
क्योंकि वहांसे जुड़े मेरे जज्बात
अक्सर अल्फाजोंके लिबास पहनकर
बाहर आते है तो कभी पुकार लेते ही बेखुदीमें
शायरी कहकर या फिर ओसमें लिपटी एक नज़्म ....
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