उनकी चाहतोंका रहा अन्दाजें बयां कुछ और ही ,
बस हम बोलते रहे और वो सुनते रहे आँखों से .....
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रस्तेके हर पत्थर पर उनका नाम लिखता चला गया ,
पत्थर ख़त्म हो गए और हसरत अधूरीसी रहने लगी ....
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इश्कके मायने पढने पढ़ ली हर किताब जिसमे ये शब्द महफूज़ लगा ,
और वक्त कुछ यूँ जाया कर लिया हमने की इश्क करना ही बाकी रह गया ...
बहुत ही बढ़िया।
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कल 16/09/2011 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!
बहुत खूब ..
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