एय बदरा...
मैंने तेरा इंतज़ार किया था बेकरारीसे
और तुम आनेमें देर लगा रहे थे !!!!
अबके आये ऐसे की जैसे
रुक जानेके इरादे है तुम्हारे उम्र भर ????
न ..न ...
सूरजकी रोशनीके बगैर बुझी बुझी लगे है अब जिंदगी ...
चांदनीके बगैर वीरानीसी है मेरी हर रात ....
सितारोंसे भी एक युग गुजरा जैसे
जब मैंने करी थी उनसे दिल की बात !!!!!
न ...न ...
तुम्हारी नाराज़गी सिर्फ मुझसे है जानती हूँ ....
हर सालकी तरह मैं न तुमसे मिलने आई ..
छत पर हम भीगते रहते थे बनकर यूँ मगन ...
छाता लेकर दूर तक पैदल चलना मेरा तनहा तनहा ...
बुन्दोंसे बातें करते हुई नज्मोंमें कहना फ़साना मेरा .....
न ..न ...
वो मेरी छोटीसी स्कूटी थी ..जिस पर सवार हो
मैं अकेली अकेली बहुत दूर तक तुम संग चली थी ....
न छाता दरम्यां था न रेनकोटमें खुद को समेटा था ....
वो बुन्दोकी बातें को तरस गए हो ?? या मेरे दीदार को रुक गए हो ???
न....न ....
मेरे सूरज को मेरे पास लेकर आओ ....
मेरी मजबूरीको समजकर अब तो लौट जाओ ....
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