29 अगस्त 2011

इंतजार क्यों ???



एक खिड़कीसे एक चेहरा देखते ही लगता ,


चलो मेरी सुबह हो गयी ...


फिर क्या हुआ एक दिन शीशा टुटा और


परदेसे खिड़की नज़रबंद हो गयी ....


क्यों इंतज़ार रहता है आज भी उसके दीदारका ??....


जब की मुझे भी वो पता है ...


वो कहीं नहीं है ...वो कहीं नहीं है .....


बस एक जगह भूल क्यों जाता हूँ मैं अक्सर ....


अपने दिलमें भी झांक लू एक नज़र ....


वहां तो हर मुलाकात कैद है याद बनकर ..........


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