मेरी मंजिल सामने है ,
पर पैर रुक से गए है ,
अब लगता है यूँ जैसे ,
मंजिलसे ज्यादा सुहाना तो वो सफ़र था ....
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उसके आने का इंतज़ार करते
नज़र ठहर जाती है दरवाजे पर ,
आते उनके नज़र बस
निगाहें क्यों झुक जाती है ????
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कभी कुछ बिन मांगे दुआ सा मिल गया ,
एक अजनबी शहरमें कोई जैसे पहचानासा मिल गया .....
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आज पता नहीं ये कलम बेवफाई कर रही है मुझसे ,
दिल सोचता है कुछ और और कुछ और ही सफे पर लिख रही है !!!!!!
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