एक परिंदेके पंख है ,
पंखको परवाज़ है ,
परवाज़ को एक उडान है ,
उडानके लिए एक आकाश है ,
अनंत , नज़रके भी उस पर तक ............
पर वहां तनहाई है ......
वहां कोई आश्रय नहीं है ...सिर्फ उडान ....
नीचे धरती है ,
घने पेड़की बाहें है ,
टहनीका आश्रय है ,
पत्तोंको मेरी कुहू का इंतज़ार है ????
वहां एक विश्राम है ........
क्या करूँ ????
बस आकाशमें उतना ऊँचे जाऊं
की
धरतीसे कभी दूर ना हो जाऊं .....
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