18 जुलाई 2011

इल्तजा ...

हर नफस तेरी यादोंके दायरे सिमट रहे है ,

लगता है तेरे मिलने का लम्हा करीब है ,

इंतज़ारकी घड़ियाँ कहीं पीछे छुट रही थी ,

और दीदार करीब है ,

तू नहीं तेरी तस्वीरसे दिल यूँ बहलाया ,

जैसे खामोशसे लम्होंको तेरी बातोंने भर दिया ,

मेरी जिंदगीके कुछ लम्होंके खाने को खाली रहने दो ,

कभी खलिशको भी तुम्हारी जगह भरने दो .....

तुम्हारे बगैर हर लम्हे को कैसे जिया है ???

बस उसे लब्जोमे सजाकर सफो को भरने की इजाजत दे दो ,

मेरे लबों पर आकर रुक जाती वो शिकायतोंको उजागर होने दो ....


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

विशिष्ट पोस्ट

मैं यशोमी हूँ बस यशोमी ...!!!!!

आज एक ऐसी कहानी प्रस्तुत करने जा रही हूँ जो लिखना मेरे लिए अपने आपको ही चेलेंज बन गया था । चाह कर के भी मैं एक रोमांटिक कहानी लिख नहीं पायी ...