5 जून 2011

मेरे पौधे मेरे पेड़ का जन्मदिवस



मेरे अंकुरित बीज के पौधे होने के इंतज़ारमें
लो ये एक और साल बीत गया ......
फिर थोड़े वृक्ष का नाजायज खून हो गया ,
फिर थोड़े जायज पौधे का जतन हो गया ,
वृक्षकी खोजमें समुन्दर भी
सुनामी बन कर धरती पर आ गया ......
मानव सर्जित परमाणुको ध्वस्त करके
वो मासूम वृक्षोंके खून का बदला ले गया ......
क्या खोया क्या पाया ???
ये नादाँ इंसान उसके हिसाबमें ही उलझ गया .....
वहां वो गमलेमें खिला पहला फूल
ये देखकर मुस्कुरा गया .......
जलके जीवचर भी त्राहिमाम है तेरी खुदगर्जीसे ओ मानव ,
थलके जीवचर भी हो चले है बेघर ......
बादल भी बेलगाम होकर कहर बरसाने लगे है ,
पवन भी बस आंधी बनकरकी तूफानी बनने लगे है ,
धरतीके पेटकी लौ अब
बर्फीले देशोंमें ज्वालामुखी बन आग उगलने लगी है .....
अब भी कुछ बाकी है तबाही के नए मंज़र खड़े करने को ????
या फिर पेड़ोंके जतनकी
पहल करने को शुभ मुहूर्त निकलना बाकी है ????
खुद को बचाने का एक रास्ता बचा है अब तो ....
अपने घरके फर्नीचरके बगैर जीना सिख ले ,
वर्ना फिर कुदरतको खफा करके खुदकशी कर .....

7 टिप्‍पणियां:

  1. समय का तकाजा है। पर फितरत ही हमारी ऐसी है कि बिना चोट खाए सुधरते ही नहीं

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  2. आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
    प्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
    कल (6-6-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
    देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
    अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।

    http://charchamanch.blogspot.com/

    जवाब देंहटाएं
  3. जलके जीवचर भी त्राहिमाम है तेरी खुदगर्जीसे ओ मानव ,
    थलके जीवचर भी हो चले है बेघर ......
    gahan ..abhivyakyi ...
    abhar ..!!

    जवाब देंहटाएं
  4. bahut hi sikshaprad saarthak rachanaa.badhaai sweekaren.



    please visit my blog.thanks.

    जवाब देंहटाएं
  5. मन को छूने वाली सुन्दर अभिव्यक्ति्

    जवाब देंहटाएं
  6. पर्यावरण के प्रति सचेत करती कविता।

    जवाब देंहटाएं

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