17 मई 2011

एक शाम खुद के नाम ..

एक शाम कुछ अलगसी थी ...जो जिन्दगीका मतलब समजा गयी ....
बस कल यूँही फॅमिलीके हमउम्र ग्रुपके साथ यहाँके लोकप्रिय स्पोट कमाटी बाग़ जाना हुआ ...छोटे बड़े मिलकर सत्रह का ग्रुप था .....वेकेशन है ...कड़ी धुप जो बादलोंके चादर ओढ़कर कुछ और गर्मी बढा रही थी ...पर कहते है ना की बचपन हर गम से बेगाना होता है ......
छोटे छोटे बच्चे ...कुछ याद और कल्पना आये ...अपनी मम्मीको कितना तंग किया होगा ना !!! ये कपडे ही पहनेंगे !!! ये जूते के साथ ये जुराबे चाहिए ...कितनी शर्तें रखी होगी ...आप हमें इस राइड में बिठाओगे ...हमें आइसक्रीम भी खिलाओगे ना !!! और फिर वो ख़ुशी राइडमें बैठकर मम्मी पापा के सामने हाथ हिलाना !!!
बहुत छोटी बातें है ये पर हमें उम्र के वो पड़ाव पर फिर ले गयी या ले जाती है ......पिकनिक का पूरा माहौल था ...फिर लॉन पर बैठकर वो सब चीजों को खाना ...और बड़ोका बच्चे बनकर खेलना ...मैंने भी कुछ खेल खेले ...खास तो प्लास्टिक का हवा भरा हुआ बोल उछालने का आनंद ही कुछ और होता है ...थोडा बेडमिन्टन भी ....
कुछ भी खाने पिनेमें मेरी दिलचस्पी नहीं रही ....पर हां वो छोटे छोटे बच्चो को केंडी खिलाने का मजा ही कुछ और था ....

कल एक अजीब अनुभूति भी हुई ...जब झूले और राइड वाले हिस्से में गयी तो मैं अपनी कल्पना में ही सही हर राइड पर बैठकर खुद को देख रही थी ...चीख और चिल्लाने का शोर मुझे नहीं सुनाई देते थे ...बस भीड़ में तनहा होने का आनंद वहीँ मिला .....ऊपर लिखी सारी बातें उधर ही मैंने महसूस किया .....
सच बचपन और वेकेशन मुझे बिना कहीं जाए वहीँ मिला खुश होकर मेरे गले लग गया ......


आई लव यु वेकेशन ....आई मिस यु वेकेशन .....

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