कुछ रुका रुका सा वक्त है ,
पल भी चलती है सुस्ता सुस्ता कर ,नींद को भी जाते हुए आँखोंसे आलस आती है ,
पलकोंभी खुलनेमें सुस्ती महसूस होती है ,
पता नहीं सूरजको
इन दिनों आनेकी क्यों इतनी जल्दी मची रहती है !!!!
फिर भी ये रुका रुका सा वक्त कितना जल्दी चला गया ????
स्कुलके हमारे वेकेशन बच्चों के वेकेशन बन गए ???कब ???
हमारे खट्टी आम को चुसना
हमारे बच्चोके लिए रसना सिरप बन गया ???कब ??
हमारे कंचे और गिट्टीओ को
तब्दील होते देखा विडिओगेम्समें ....
और चड्डी बनियान और समीज को
बरमूडा और केप्री में बदलते देखा ....
फिर भी बर्फ का गोला कायम है ...
रात की आइसक्रीम कायम है .....
बगीचोंमें जू के पास भीड़ कम नहीं हुई .....
आज ये सब करके फिर एक बार
बच्चे बन जाने का मज़ा ही कुछ और है .....
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें