उनके पास कारवां था , उनके पास हुजूम था ,
उनके पास भीड़ थी , मेरे पास तनहाई थी .......
उनके पल औरोंके थे , मेरे पास सिर्फ मेरा वक्त था ....
मैं खुद के साथ थी तभी मैं तनहा ना थी तनहाईके आलममें भी ...
हर कोई मेरे दिल को झख्म देकर जाता रहा ,
मैं सहती रही क्योंकि उसे अपना माना था मैंने ,
मैं सहती रही क्योंकि उनका साथ देने का वायदा किया था मैंने ,
फिर भी झख्म जब नासूर की शक्ल इख्तियार करने लगा ,
मैंने अपने दिल को समजा लिया ,
गम किसीसे बांटकर तकलीफ कम नहीं होती कभी ,
बस ये तो सिर्फ दिल को हल्का करने का बहाना होता है ...
देख सड़क पर उस अजनबी को जो तेरा कोई नहीं ,
उससे कोई तुझे तकलीफ नहीं या झख्म खाने का डर ....
बस जो तेरे इर्दगिर्द घेरे है उन्हें उसी अजनबी सा समज ले ,
बस इस भीड़ में खुद को तनहा ही कर ले ...
बस सुकून ....
दूर दूर तक सुकून .....
बहुत जी लिए तुमने इस जिंदगीको औरोंकी ख़ुशी की खातिर ,
अब आजमा भी ले की उन्हें तेरी परवाह है कितनी ???
या है भी या नहीं ????
जिंदगी मेरे लिए ख्वाबोंके बादल पर उड़नेवाली परी है .!! जो हर पल को जोड़ते हुए बनती है, और उन हर पलोंमें छुपी एक जिंदगी होती है ....
4 अप्रैल 2011
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