8 मार्च 2011

एक चाहत नारी की

एक औरत की चाह :
आज कहते कहते सुनना है अपनी मर्जीसे ,
आज चलते चलते रुकना है अपनी मर्जीसे ...
आज ख़ामोशीको गुनगुनाना है अपनी मर्जीसे ,
आज हँसते हँसते रोना है अपनी मर्जीसे ....
आज ढेरसे सपने देखने सोना है अपनी मर्जीसे ,
आज कुछ सपनों को पाना है जागते हुए अपनी मर्जीसे ...
रोज सूरज पहनाता है मुझे कई रिश्तोंके मुखौटे ,
आज रिश्तोंके सारे मुखौटे उतारकर सिर्फ प्रीति बनकर जीना है अपनी मर्जी से ....
दो साँसोंके बीच कुछ खाली जगहसे इस दिनमें
खुली सांस लेकर हर पल जीना है अपनी मर्जी से ....

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