हम क्या मोलभाव करेंगे
बिक गए थे कभी हम भी पानी के दाम पर ,
ये बेमुर्रवत दुनिया क्या जाने एक दर्द का दाम??
ये तो हर गली बस मुफ्त में ही बिकता गया ....
वो खुशियों की गली थी जहाँ हर चीज़ खुबसूरत पड़ी थी ,
क्या करे हम खरीद ना पाए कुछ भी ,
हमारी जेब से उनकी कीमत बड़ी थी ....
देने को हमारे पास सब कुछ था ,
जिसकी इस दुनिया में कमी है ,
प्यार ,वफ़ा ,इमान ,शिद्दत ,सच्चाई ,
पर वापस हम यूँ लौटे
क्योंकि बाज़ार में इसके खरीददार की कमी थी .....
जिंदगी मेरे लिए ख्वाबोंके बादल पर उड़नेवाली परी है .!! जो हर पल को जोड़ते हुए बनती है, और उन हर पलोंमें छुपी एक जिंदगी होती है ....
7 मार्च 2011
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