28 फ़रवरी 2011

खुली आँख का ख्वाब ...

एक कोरे सफे पर कुछ एहसास बिखर जाए ,
दिल कहे कुछ खामोश निगाहें अफसाने बन जाए ,
झख्म कुछ पुराने फिर उभरते जाए ,
उसकी टीसमें फिर तुम्हारा नाम सुनते जाए ........
कहीं गुमशुदासी शाम दूज के चाँदसी मुस्कुरा जाए ,
उस मुस्कराहट लिए वो गुलाबकी पंखडियोंसे लब दिख जाए ,
घूँघटमें अधढका तुम्हारे चेहरे का चाँद ,
मेरे जीवन की हर सुबह रोशन कर जाए ....
तुम्हारे तसव्वुरकी तड़प लिए
पलक भी झपकना भूल चुकी हो जब ,
तुम्हारे क़दमोंकी आह्टभर से ,
मेरा बेजान बना दिल फिर से धड़क जाए .....

1 टिप्पणी:

  1. बहुत ही सुंदरता से अपने कल्पनाओं को शब्दों मे गढ़ा है...लाजवाब।

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