5 अक्तूबर 2010

कल आये थे वो

कल सपनेमें वो आये थे चाँद बनकर ,
आधा चाँद ढका हुआ परदेमें ,
शर्म से लाल थे रुखसार ,
कांपती उंगलिया ,
थरथराते होठ ,
झुकी हुई पलके ,
बस एक इल्तजा लिए
इकरारे मोहब्बतकी बैठा रहा
तकिये पर खुली खिड़की पर पलकें बिछाकर
वो चाँदसे उतर आयेंगे
और इजहार करके जायेंगे ....

1 टिप्पणी:

विशिष्ट पोस्ट

मैं यशोमी हूँ बस यशोमी ...!!!!!

आज एक ऐसी कहानी प्रस्तुत करने जा रही हूँ जो लिखना मेरे लिए अपने आपको ही चेलेंज बन गया था । चाह कर के भी मैं एक रोमांटिक कहानी लिख नहीं पायी ...