एक चांदनी रातमें चंद फुहारोंको खुद पर बहाकर
इस बहती हवाओंमें श्वेत परिधान किये
श्वेत चादर पर खुदको बिछाकर
बस नींदके दामनमें सरक जानेको जी किया ....
गगन पर निकला वो पूनम का पूरा चाँद
कुछ इश्कियाना मिजाज़ लिए मुझे छेड़ने आ गया ...
आज कुछ मुझसे भी बोलो ,राजे दिल हम पर भी खोलो ....
विस्फारित नयनोसे मैं उसे तकती रही
उसकी नर्म चांदनीमें खुद को बरबस भिगोती रही ....
चाँदने कहा - तुम्हारी भीगी झुल्फोंकी बूंदों की शबनम पिने दो आज
तुम्हारी हलकीसी हँसी को मेरे दिल में बस भी जाने दो ...
नींद बड़ी ही खुशनसीब है रोज तेरी आँखोंमें रात आकर बस जाती है
आज सारी रात जागकर तुम मुझसे गुफ्तगू करने में बिताने दो .....
अगली पूर्णमासीको शायद मैं बरखाके बादल ओढ़कर आऊं ....
और छत पर लेटी हुई इस मासूमसी हँसी सूरत अगले साल देख पाऊं ....
waah............bahut hi sundar bhavmayi rachna.
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