28 मई 2010

रेगिस्तान

मुझे पानीकी बूंदों प्यास नहीं
इस सहराको किसी जिंदगीकी खुदमें तलाश भी नहीं
वजूद हूँ कण कणमें बिखरकर फैला हूँ मीलों तक
फिर भी इस धरतीकी हथेलीमें सिमटा हुआ
मैं रेगिस्तान ...ये रेगिस्तान ....
और मुझे ऑससी पानीकी उड़ने वाली बूंदों की प्यास भी नहीं ....
मीलों तक फैला हुआ सन्नाटा है
दिनभर सूरजकी तपिशको खुद पर सजाकर
मरीचिकाकी लहरों पर बहता हुआ फकीर सा ....
रात मुझे ठंडी ठंडी हवाकी लहरों को
मा के पल्लू की तरह ओढ़ाकर मुझे
सितारों की शाल ख़ामोशीसे लोरियां सुलाती है ....
मेरी आँधियोंमें बहता संगीत सुन ...
रेतकी उड़ती चादर से अपने हुस्न को सजाकर देख....
हरियाली कभी एक बार इस तरफ नजर घुमाकर देख...
अपनी कोमल हथेलीके स्पर्शसे मेरी बालू को सहला कर देख...
प्यार की बुँदे मिलेगी मुझ में भी
मैं हूँ रेगिस्तान .....................

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