आलम क्या है ये दिलका ?
ये समजा ना पाए हम कभी उनको ...
अब तो हमें शब्दों की भी शक्लें नज़र आने लगी है ....
बहार लिखे तो समां फूलोंकी खुशबुसे तर हो जाता है ...
पतझड़ लिखें तो कलमसे भी स्याही सूखने लग जाती है ....
हुस्न लिखें तो आपकी शक्ल रूबरू नज़र आने लगती है ....
इश्क लिखे तो मिलने की तड़प छा जाती है ....
इबादत लिखें तो सज़देंमें तुम्हारे एक बंदगी मुकम्मल हो जाती है ....
भावनाएँ अपने साथ बहा के ले जाती हैं
जवाब देंहटाएंइबादत लिखें तो सज़देंमें तुम्हारे एक बंदगी मुकम्मल हो जाती है ....
जवाब देंहटाएंwah................