एक पेड़की ठूंठ पर एक छोटे से पत्तेने सदा दी
जिंदगीका गला खुद घोंटनेके लिए जो फंदा बनाया था
उस निराश आदमने ,
रस्सा ले वापस लौट गया .....
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उम्मीदके उजालेकी प्रतीक्षामें
पिछले पहर आँख लग गयी ,
नींद खुली तो शाम फिर ढलने लगी थी ....
सूरजने कुछ रौशनी दे दी थी ,
जहनमें नए ख्याल की रौनकें लगी थी ......
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इब्तदा करने का इंतज़ार ना कर जानम ,
तेरे क़दमों को हरारत दे दे ,
इंतज़ारकी इन्तेहाँ खुद ब खुद
मंजिल पर मिल जानी है .......
इब्तदा करने का इंतज़ार ना कर जानम ,
जवाब देंहटाएंतेरे क़दमों को हरारत दे दे ,
इंतज़ारकी इन्तेहाँ खुद ब खुद
मंजिल पर मिल जानी है .......
आपसे सहमत हूं।