जजबातोंको लौ को जलते रहने दो
तुम्हारे जिन्दा होने का सबूत है वह
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ना पास आओ इतने की हमारे
जो बंध रहे है तार हमारे दिलोंके दरम्यां
बस उलजकर रह जाए ...
ना दूर जाओ इतने हमसे की
हमारी नज़रों के दरम्यां के ये
तार यूँ चटख कर टूट जाए ....
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ये लम्होंकी सौगाद है ये ख़ामोशी ,
दिलकी सदाओंसे इसे बहला दो .....
जुकी हुई नज़रको उठाकर
हम पर एक बार निगाहें करम कर दो ......
बहुत खूब. अगर, ज़जबात ना हो दिल में, तो वो इन्सान ही क्या?
जवाब देंहटाएंअच्छी रचना , बधाई
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