18 दिसंबर 2009

ख़ुद से ख़ुद मिल ...

मुझे क्यों हो किसीसे कोई शिकवा गिला ?

किसीने तो नहीं माना मुझे अपना !!!

ठंडी हवा के झोंकेमें साथ चले सब मेरे ,

बस रेगिस्तानकी कड़ी धूपमें तनहा छोड़ चले !!!!!

अकेले आए थे इस दुनिया में और अकेले ही तो जाना है ,

जानते है मानते है फ़िर भी इस दुनिया में ,

जय वीरू और हीर रान्ज़े के अफ़साने है !!!!!

देखा नहीं ख़ुद को कभी न परखने का वक्त मिला खुदको ,

वरना न ये गिले होते न शिकवे क्यों हम रह गए तनहा से !!!!

ख़ुद ही ख़ुद का मसीहा बनकर देख जरा ,

न नजर आएगा फ़िर तू यूँ डरा डरा ...!!!

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