6 नवंबर 2009

ये इश्क भी ....

लरज़ते होठों पर मेरा नाम था

पर वो बता ना सके ,

ये हया थी या कोई डर था ,

नज़र उठ उठ कर झुक जाती थी .....

नकाबके पीछेसे नजर आती है सिर्फ़ दो आँखे ,

नमींकी परते साफ़ नजर आती है ,

मोमबत्तीकी लौ में वो चेहरे का नूर बुझा सा जाता है ,

क्या कहूँ तुम्हे ?

बस मेरे प्यार पर ऐतबार कर लो ,

शायद मुझे पानेके लिए ये जहाँ छोड़ना पड़े .....

बस दो राहे है अब सामने ........

या जान को चुन लूँ या जान को चुन लूँ .....

इब्तदाए इश्क को अब अंजाम देकर जायेंगे ,

इन्तेहाके मकामको पाने हर इम्तहान देते जायेंगे .....

4 टिप्‍पणियां:

  1. इब्तिदाए इश्क है रोता है क्या ...
    आगे आगे देखिये होता है क्या ..!!

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  2. नकाबके पीछेसे नजर आती है सिर्फ़ दो आँखे ,
    नमींकी परते साफ़ नजर आती है ,
    मोमबत्तीकी लौ में वो चेहरे का नूर बुझा सा जाता है ,

    खुबसुरत अन्दाज ....

    जवाब देंहटाएं
  3. प्यारी सी कविता, सुन्दर भाव.

    जवाब देंहटाएं

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