8 अक्तूबर 2009

चाँद और मैं ....


कल सपने तैर रहे थे मेरी बंद होती पलकों पर रातमें ,

खिड़कीसे चौथ का चाँद झांक रहा था ....

मुस्कराहटका कोई न कोई राज तो होगा ही ,

पूछा नहीं क्योंकि तैरते सपने बह जाने का डर था ,

गर जबां खुल जाती पल भर के लिए भी .....

चाँदसे बातें की है कभी आपने भी ?

रातकी तनहाई बांटते हुए सितारोंसे ,

वो कभी कभी अकेला ही रह जाता है ,

बादलकी चुनरमें छुपकर चुपके सो रो जाता है ......

कल रात ऐसी ही ठंडक थी समांमें एक बार फ़िर से ,

तैरते सपनों की तादाद बढ़ गई और वह बहने लगे फिजामें ,

चाँदके पास एक सपना पहुँच गया और चाँद हंस पड़ा ......

3 टिप्‍पणियां:

  1. कल रात ऐसी ही ठंडक थी समांमें एक बार फ़िर से ,

    तैरते सपनों की तादाद बढ़ गई और वह बहने लगे फिजामें ,

    चाँदके पास एक सपना पहुँच गया और चाँद हंस पड़ा ......
    chand ki muskan liye sunder rachana.badhai

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  2. http://dilkashshayri.blogspot.com/
    Enjoyyyy

    जवाब देंहटाएं

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