कल सपने तैर रहे थे मेरी बंद होती पलकों पर रातमें ,
खिड़कीसे चौथ का चाँद झांक रहा था ....
मुस्कराहटका कोई न कोई राज तो होगा ही ,
पूछा नहीं क्योंकि तैरते सपने बह जाने का डर था ,
गर जबां खुल जाती पल भर के लिए भी .....
चाँदसे बातें की है कभी आपने भी ?
रातकी तनहाई बांटते हुए सितारोंसे ,
वो कभी कभी अकेला ही रह जाता है ,
बादलकी चुनरमें छुपकर चुपके सो रो जाता है ......
कल रात ऐसी ही ठंडक थी समांमें एक बार फ़िर से ,
तैरते सपनों की तादाद बढ़ गई और वह बहने लगे फिजामें ,
चाँदके पास एक सपना पहुँच गया और चाँद हंस पड़ा ......
कल रात ऐसी ही ठंडक थी समांमें एक बार फ़िर से ,
जवाब देंहटाएंतैरते सपनों की तादाद बढ़ गई और वह बहने लगे फिजामें ,
चाँदके पास एक सपना पहुँच गया और चाँद हंस पड़ा ......
chand ki muskan liye sunder rachana.badhai
http://dilkashshayri.blogspot.com/
जवाब देंहटाएंEnjoyyyy
संवेदनशील रचना। बधाई।
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