21 अगस्त 2009

सिर्फ़ तुम ही ....

कहकहोंमें न सुन पाए कभी मेरे दर्दकी सदा ,

हमारे हँसते लबोंकी कहानीमें छुपी थी दर्दकी कराह भी ,

एक चिलमन रही हमेशा मलमलकी दरम्यां हमारे ,

एक हमदर्दीकी फूंकसे हटा ना पाए तुम उसे .........

========================================

सिसकियाँ सुन पाए आज बुझी हुई अंगीठीकी ,

गुमसुम लकडियाँभी थी जल जाने के इंतज़ारमें ,

धान पड़ा है पानीके संग उबलकर खिल जाने को भी ,

पर दहलीज पर खड़ी है अभिसारिका किसीके इंतज़ारमें ..........

4 टिप्‍पणियां:

  1. लाजवाब अभिव्यक्ति है… सुन्दर रचना के लिये बधाई.

    जवाब देंहटाएं
  2. सिसकियाँ सुन पाए आज बुझी हुई अंगीठीकी ,

    गुमसुम लकडियाँभी थी जल जाने के इंतज़ारमें ,

    धान पड़ा है पानीके संग उबलकर खिल जाने को भी ,

    पर दहलीज पर खड़ी है अभिसारिका किसीके इंतज़ारमें ..........
    sabse achhi mujhe ye lines lagi....bahut kuch kah diya aapne kavel ...kuch pangtiyo mai...wahh wahhh

    जवाब देंहटाएं
  3. धान पड़ा है पानीके संग उबलकर खिल जाने को भी ,

    पर दहलीज पर खड़ी है अभिसारिका किसीके इंतज़ारमें
    सुन्दर रचना आभार्

    जवाब देंहटाएं
  4. धान पड़ा है पानीके संग उबलकर खिल जाने को भी ,

    पर दहलीज पर खड़ी है अभिसारिका किसीके इंतज़ारमें ..........
    waah bahut khub,ye juda andaaz bhi bahut achha laga.

    जवाब देंहटाएं

विशिष्ट पोस्ट

मैं यशोमी हूँ बस यशोमी ...!!!!!

आज एक ऐसी कहानी प्रस्तुत करने जा रही हूँ जो लिखना मेरे लिए अपने आपको ही चेलेंज बन गया था । चाह कर के भी मैं एक रोमांटिक कहानी लिख नहीं पायी ...