2 मई 2009

क्या ..उफ़ ये मोहब्बत !!!

नजाकतसे आपकी ये फूल क्यों शरमाया ?

ये क्या इल्म है इस हुस्नका जो चाँद ने भी करम फ़रमाया ?

गुजारिश करके देख ली आज आपके दीदार करके कलमको

क्या ये बेपनाह हुस्न शब्दोमें कैद कर पायेगी ?????

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मोहब्बत करते वक्त न पूछा इस नाचीज़ दिल को कभी ,

दिलका जब मिलना हुआ तो दिल खो जाने का ख़याल न रहा ,

निशान आपके कदमके ढूँढता फ़िर रहा हूँ यूँ गलियोंमें रहगुजरमें ,

तस्वीर आप ही की रहती है हरदम आंखोंके सामने

हो कभी उठती सुबह या ढलती शाम ही क्यों न हो !!!!

क्या इसे प्यार कहते है ? ये तो नहीं मालूम ...

बस इतना ही पता है जब सामना होता है आपसे

दीदार होता है आपका वही मेरी सहर होती है .....

3 टिप्‍पणियां:

  1. हो कभी उठती सुबह या ढलती शाम ही क्यों न हो !!!!

    क्या इसे प्यार कहते है ? ये तो नहीं मालूम ...

    बस इतना ही पता है जब सामना होता है आपसे

    दीदार होता है आपका वही मेरी सहर होती है .....

    behad khubsurat ehsaas waah

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