18 मार्च 2009

जुदाई

इस पलके अगले पलमें इस पल की जुदाई है ,
इस दिन से गुजरे दिनकी और आने वाले दिन में इस दिनसे जुदाई है ...

इस जुदाईकी जडोंको सींच सींच कर
पनपता है जो दरख्त वो यादों का होता है ...
इस दरख्त को कभी पतझड़ नहीं छू पाती,
हर गुजरते पलके साथ नयी कोंपल फूट जाती है ...

कुछ शाख पर पत्ते है ,कुछ पर खिले है फूल ,
कुछ बचाने खुदको कांटोका जामा पहनकर है आते ...
किसी शाख पर होती है पंछियोंकी कूक ,
और देखो हर शाख पर घरौंदे बन ठहर जाते है ये रिश्ते .....

ये जुदाई के लम्हे कभी हंसाते है ,कभी रुलाते है ,
दुआएं खुशियोंकी देते तो है कभी गम भी छूकर जाते है ....
तरोताजा रखा है इस दिलमें ये यादोंके दरख्तको
न मिलनेका न बिछड़ने का गम है ,याद बनकर आप जो संग चले है .......

2 टिप्‍पणियां:

  1. लगातार लिखते रहने के लि‌ए शुभकामना‌एं
    सुन्दर रचना के लि‌ए बधा‌ई
    भावों की अभिव्यक्ति मन को सुकुन पहुंचाती है।
    लिखते रहि‌ए लिखने वालों की मंज़िल यही है ।
    कविता,गज़ल और शेर के लि‌ए मेरे ब्लोग पर स्वागत है ।
    http://www.rachanabharti.blogspot.com
    कहानी,लघुकथा एंव लेखों के लि‌ए मेरे दूसरे ब्लोग् पर स्वागत है
    http://www.swapnil98.blogspot.com
    रेखा चित्र एंव आर्ट के लि‌ए देखें
    http://chitrasansar.blogspot.com

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