24 दिसंबर 2008

आयना कह दूँ दोस्त .......

वह एक आवाज है ,

जिसका कोई चेहरा नहीं है ,

सुनती हूँ उसे ,

कल्पना पर कोई पहरा नहीं ,

जहनमें एक तस्वीर बनाकर रखी है ...

उससे एक दिन मिलना है ये दिल चाहता है ,

पर फ़िर भी मिलने की चाहत नही ....

बस उसे जिंदा रहना है हमारे ख्वाब में ही हमेशा ,

तसव्वुर की कोई ख्वाहिश नहीं है ....

मिलते है जैसे बरसोंसे ,

जानकर अनजान बने हम जैसे अजनबीसे ,

इस रिश्ते को क्या नाम दे हम ?

जिसमे रिश्ता होते हुए भी कोई रिश्ता ही नहीं ...

एक कशिश ,एक प्रेरणा ,एक जूनून ,एक ख्वाहिश ,

जिसकी तलाश है एक मंजिल ,

एक चेहरा ,एक ख्वाब ,एक प्यार, एक बंदगी ,

तेरा नाम मुझे देना है आयना जिसे में कह दूँ दोस्त !!!!!!!!!

1 टिप्पणी:

  1. खूबसूरत ख्यालों का मुजाहरा किया है आपने अपनी इस रचना में. लिखते रहिये

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