25 दिसंबर 2008

बच्चे हाँ !! बच्चे !! : कल का हमारा भविष्य ....??


बच्चे!! हाँ, बच्चे !!
आज बात करेंगे बच्चों की !! बहुत बड़ी बड़ी बातें सुनते हैं !! हर कहानीका ये सार होता है बच्चे इस देश का भविष्य है .उनकी आँखें देखती हूँ तब उनका भविष्य भी देख रही हूँ ....

मुझे बचपनमें अगर कोई खेल सबसे ज्यादा पसंद था तो वह था लुका छिपी , या आईस पाईस थाप्पो !! या फ़िर कहो की हाईड एंड सीक .छुपना और ढूँढना !!!बस ये खेल आज भी हम अपने सपनों के साथ खेलते है .बड़ी घास हो या फ़िर नाटा सा पेड़ या बड़े से पेड़ का मोटा सा तना .कई साल हो गए ये खेल खेले हुए या इस खेल को खेलते बच्चों को देखा हो !!!उनके कोमल हाथों में टी वी या वीडियो गेम्स के रिमोट कंट्रोल नजर आते है और हाथो में आलू के चिप्स या पॉप कोर्न के पेकेट !! आंखों पर मोटे चश्मे होना एक आम बात है .
उनकी सुबह होती है टी वी पर के इश्तिहार में आते स्नेक -नाश्ते - बोर्नविटा या होर्लिक्स मिले दूध के साथ .वेकेशन हो या स्कूल नुडल्स ,वेफर्स या ब्रेड बटर का नाश्ता -जल्दी जल्दी बनता है और बच्चे भी यही पसंद करते है ....

अब बात स्कूल जाते बच्चों की ...
महज ढाई साल का बच्चा है ! प्ले ग्रुप में रु.२५००० डोनेशन देकर प्रवेश लिया है .शहर की सबसे बढ़िया स्कूल है .यहाँ से बच्चा सुपर चाइल्ड बनकर ही निकलेगा .
सुबह में ६ बजे बच्चे को परियों के देश से वापस खीच के लाती है माँ की पुकार . जिसे अब इस नन्ही सी जान को साढे सात बजे स्कूल छोड़ने जाना है .जैसे हम तारे ज़मीं पर फ़िल्म में देख चुके है : मुंदी हुई आँख से ब्रश करना ,नाहना ,फ़िर दूध का गिलास ,युनिफोर्म !!!और फ़िर स्कूल . ये स्कूल की दास्ताँ तो हम सभी जानते ही है !!!

यहाँ पर आपको बचपन कहीं पर भी नजर आता है क्या ? खास करके तब जब बच्चा घर वापस आता है तब ? माँ ऑफिस में हो और आया या दादा दादी के साथ उसका दिन गुजरता हो . चंद खिलौने , या नाश्ते या पिकनिक माँ की गोद का विकल्प नहीं बन सकती . इस के सामने आपके पास ढेरों दलीलें होगी ही यह मैं भी जानती हूँ पर इस कड़वी सच्चाई है जिससे हम जानकर भी मोड़ जाते है !!!

बचपन में जब मैं स्कूल से लौटती थी और माँ कहीं पड़ोस में भी बैठी हो तो मेरे चेहरा फ़ौरन उतर जाता था .क्या आज का बच्चा ये पल पाता है ? बड़े बड़े झोले कंधे पर लटका कर आज का बचपन इस क्लास से उस क्लास तक माँ बाप की अभिलाषा को पुरा करने के लिए अपना बचपन दाव पर लगाकर घूमता रहता है .. सुपर किड बनानेकी माँ बाप की ख्वाहिश पर बलि चढ़ जाती है उस मासूम के बचपन की !!!

आंखोंसे नींदने दामन न छोड़ा हो ऐसे बच्चों को स्कूल के पास रिक्शा से उतरते देखते है तो अपने बचपन की याद बरबस याद आ जाती है . जब ये बोझा हम कभी नहीं ढोते थे . झोले के वजन से झुके हुए कंधे !! स्कूल की चौथी मंजिल तक ये बोझा ढोकर चढ़ने का !!!घर लौट कर फ़िर होम वर्क ,हॉबी क्लास ,ट्यूशन का टेंशन ,उसका भी होम वर्क !!! फ़िर ये हम तैयार कर रहे है एक ऐसी फसल जिसका भविष्य है एसिडिटी ,हायपर टेंशन ,हार्ट अटक, मधुमेह जैसी बीमारियाँ !!
कुछ कहती हूँ ऐसा जिसके बारे में सुनकर आज का बच्चा अपनी सुपर मोम से पूछेगा ," मामा ,व्होट इस धिस ?"

१. रेत के ढेर पर बैठ कर छोटा सा रेत का घर या पहाड़ बनाना ,पतंग की डंडी का झंडा बनाकर गढ़ना !!!


२.बोलसे साथ पथ्थरों के ढेर को तोड़ के भागना और मार कर भाग जाना ! और फ़िर ढेर को फ़िर से सजा कर सतोलिया कर के चिल्लाना !!!

३.बारिश के दिनों में जहाँ पर पानी भर जाता है वहां स्कूल की नोट बुक के पन्ने फाड़ कर कागज की नाव बनाकर तैराना ..!!!

४.लुका छिपी खेलना ,स्तापू खेलना ,गीत्ते खेलना ,रस्सी कूदना !!!!

ये कुछ ऐसे खेल है जिसमें भरपूर बचपन छलकता है ...पर आज के स्मार्ट किड इसे कैसे खेले ? उन्हें स्कूल के बाद यु सी मॉस के गणित के क्लास में जाना होता है ना! मेथ्स पक्का नहीं होगा तो इंजिनियर कैसे बनेंगे ?

परियों की कहानियाँ तो टी वी के कार्टून चेनल पर तैयार ही दिखाई देती है ? कल्पना करने की जहेमत क्यों करे ? वेफर का पेकेट लेकर खाते खाते टी वी देखता ये बच्चा मोटापे का शिकार बचपन में ही हो जाते है ...शक्कर पारे ,पूरी ,की जगह पित्ज़ा पफ्फ़ ने ले ली है जो मोटापा बढ़ने में काफी मदद करता है ....
बचपन से जो टेंशन पालने की आदत पड़ती है वह रूप बदलकर जिंदगी के हर मोड़ पर मिलती रहती है .

प्लीज़ इन बच्चों को बच्चे रहने दो !!! जब मेरी बेटी छोटी थी तब उसके साथ मैं रेती के ढेर पर उसे घर बनाने में मदद करती थी .बारिश मे कागज़ की नाव की नाव बनाकर उसे बारिश मे उसे तैराने के लिए भेजती थी और उस वक्त की उसकी मुस्कान मेरे लिए सबसे सुंदर लम्हा है जो मेरी स्मृति मे अंकित है !!!!
उसके सपनों पर हमने अपनी महत्त्वकांक्षा की लगाम कभी भी नहीं डाली है .सिर्फ़ सिखाया उसे आत्मविश्वास से उड़ना ,अपनी राहें ख़ुद तय करना ,गिरने पर संभलना, जिंदगी को सही मायने मे जीना उसके राहबर बनकर ....!!!

संगीत सुनना ,पंछियों को देखना ,बारिश की बूंदों पर ठुमकना ,सुबह मे उगते सूरज के रंगों को देखना और अच्छा इंसान बनने का मौका दीजिये इस बचपन को ..उसकी ख्वाहिश को उड़ान का मौका दो ..अपना भविष्य अच्छा बनाने की सोच उसमें भी है . उसको परवान चढ़ने दो .......!!!!

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