५४, साउथ एवन्यु, टोरोंटो , कनाडा ...
ये यशवंत सिन्हा का पता है . यशवंत आज डाइनिंग टेबल पर कुछ चुप्पी साधे बैठा था .उसकी विदेशी पत्नी जेनीने उसे रोटी के लिए पूछा .यश ने मना कर दिया . चुपचाप खाना खाकर सोफे पर बैठकर वर्तमान पत्र के पन्ने पलटने लगा .जेनी रसोईघर का पुरा काम निपटाने के बाद जब बाहर आई तो धीरे से यश को कहा ,"यश , जरा पेपर सीधा पकड़ लेते ।क्या बात है ? क्यों इतने उदास लग रहे हो ?""
"कुछ ख़ास नहीं ॥"
यश ने बात टालने की कोशिश की ।"नहीं , कुछ तो जरूर है ..."
जेनी ने उसका मन टटोलने की भरसक कोशिश की ।यश कुछ भी नहीं बोला । रात को सोते वक्त भी मौन का साम्राज्य हावी ही रहा .हमेशा देर से उठनेवाला यश आज सुबह में जल्दी उठ गया . घर के बरामदे में वह अकेला ही बैठा हुआ था . जेनी उसकी चाय वहां पर लेकर आ गई ."
यश , आप इतने उदास क्यों हो गए हो ? हमारे बच्चे अब बड़े हो गए है .उनके नए नए पर निकल आए है . उन्हें उड़ने की इजाजत दे दो . "आयरिश पत्नी जेनी इतने साल यश के साथ रह कर बड़ी ही सुंदर हिन्दी बोल सकती थी ।"
मैंने इस बात से इनकार कहाँ किया है . पर सोचो सिर्फ़ दो दिन तो मांगे थे मैंने उनसे ...!!!सरोष तो खैर नासा में भरती हुआ है तो वह आ नहीं सकेगा , मान लिया .पर मिली ने क्या कहा -पोप्स आपको अब हमारे बगैर ही जीना सिख लेना चाहिए ....जेनी , बस इसी लिए मेरा दिल टूट गया . इतने साल वतनसे दूर होते हुए भी दीवाली तो हमने साथ ही मनाई है ना !!!" यश की आवाज कुछ भारी हो गई थी ।"
"यश , मैं ये नहीं जानती की आज आप ऐसा क्यों सोच रहे हो ।मैं जानती हूँ भारत के लोग बहुत ही भावुक होते है . पर आप ये भी सोचो की आप कितने साल से भारत नहीं जा पाए और दीवाली पर तो कभी भी नहीं तो आपके माँ-बाप का क्या हाल होता होगा ?"
जेनी ने अनजाने में ही यश की दुखती हुई नस पर हाथ रख दिया ।पिछले आठ साल से यश माँ-बाप से मिलने नहीं गया था .आज अपने बच्चों की बातें सुन कर उसे अपने माँ बाप की याद रुला गई .जेनी तो तैयार हो कर ऑफिस चली गई . पर यश आज नही गया . अलमारी से पुराने आलबम निकालकर दिनभर देखता रहा .अपने बचपन की तस्वीरें देखते वक्त न जाने कितनी बार उसने अपनी आँखे पोंछ ली होगी . अपने दोस्त , छोटी बहन सब सब आज जैसे उसके घर में ही आ गए थे .....
इस वक्त शाम के साढे सात बज रहे थे ।जेनी अब तक घर नहीं लौटी थी . क्या बात होगी . यश ने मोबाइल फोन लगाया .स्विच ऑफ़ आ रहा था . अब वह परेशान हो गया . उसने जेनी के दोस्तों के वहां फोन करने की सोची तब ही दरवाजे की घंटी बजी .जेनी थी . यश रसोई में जाकर दोनों के लिए चाय बनाकर ले आया .जेनी ने अपने पर्स में से एक लिफाफा निकालकर यश को दे दिया .यश ने देखा अपने वतन गुरगांव जाने के लिए दिल्ही के दो एर टिकट थे ठीक पांच दिन के बाद के ."
ये क्या है ?" यश ने सवाल किया ।"
" इस दीवाली पर हम अपने घर इंडिया जा रहे है ..." जेनी बोली ।
जब बाथरूम से जेनी बाहर आई तो यश का मुंह आश्चर्य से खुला ही रह गया .साड़ी पहनकर आई थी वह " यश , आज भारती के पास उसके घर ये सीखने के लिए गई थी इसी लिए देर हो गई मुझे ...." यश अब खिलखिलाकर हंस पड़ा । अब सारी टेंशन हव्वा हो गई थी ....==================================
"अरी यश की अम्मा !!ये क्या करत हो ? अब तो हम बूढे हुई गवा है ।कुछ खा भी नहीं सकत है तो फ़िर ये गुजिया , मीठे पकवान कौनों के लिए बनावत हो ? और बताएं जिसकी तुम राह देखत हो ना इतने साल से !!वो तो आनेवाले नाहीं है कभी समजी!!! बहुत बड़ा हुई गवा है तोहार लाल !!!" बूढे समरजीत अपनी बीवी जमुना से बतिया रहे थे गाँव में ....." ये तो हम भी जानत है यश के बापू .... लेकिन जब तक साँस है तब तक आस तो बंधी ही रहेगी ना ....ये आस ही तो है जिसके सहारे हमरी साँस भी टिकी हुई है ....इन बुझते दिएमें तेल डालत है ...." दीयों में तेल डालती हुई जमुना बोली ।======================================
दूसरी सुबह दीवाली के दिन पाँच बजे में ही किवाड़ का दरवाजा खटका । जमुना गाय का दूध निकाल रही थी . "
अरी ये सुबह सुबह कौन आई गवा है ? " कहती दरवाजे की और लपकी ।"
माँ, प्रणाम !!" जेनी ने माँ के पाँव छुए । गुलाबी साड़ी में आज वह बेहद खूबसूरत लग रही थी . पीछे ही यश भी आकर पाँव छूने लगा ."
देखो तो जरा ये कौन आया है ?" जमुना ये कहती हुई सीधी अन्दर भागी बहु के लिए आरती की थाली लेने के लिए जो पहली बार यहाँ आई थी ।"
तेरी आवाज बता रही है भागवान की आज तो तेरा बेटा ही आया है ." कहते हुए समरजीत बाहर आए और दोनों को आशीर्वाद दिया ।आज जैसे वहां खुशियों का सैलाब आ गया था । बरसों के बाद भी माँ-बाप के प्यार में और पकवानों के स्वाद में कोई फर्क नहीं था .......=====================================
भैयादूज के दिन यश की बहन जानकी की खुशी तो बस सिर्फ़ आंखों से बरस रही थी .....
bahut achhi kahani.
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया, भई, बहुत ख़ूब
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