11 दिसंबर 2017

हमसफर

क्यों चाहूँ मैं तुम्हे , तुम भले मेरी तकदीर सही ,
क्यों सराहूं मैं तुम्हे, तुम चाहे मेरे करीब सही,
क्यों तेरे ख़याल मुझे रहने नहीं देते तन्हा ,
मेरी लिखावट में घुल जाती है तेरी बेवफाई सही,
तू कोई अपना तो नही था ,फिर भी तेरे लिए ये खलती है ये दूरियाँ भी कहीं ....
रिश्ता कुछ अपनों सा है ,
रिश्ता कुछ सपनों सा है,
थोड़ा अजनबी सा है,
थोड़ा पहचाना सा है....
तुम्हारा इन्तजार करूँ??
या आगे का सफर तय करूँ??
हर रास्ते पर मोड मिलते हो कहीं ना कहीं
तो मुस्कुरा देगें हमसफर रेलगाड़ी के हो जैसे.....

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