आज दिन धूप पहनकर निकल पड़ा है ,
गर्मी के गहने पहनकर सड़कों पर ....
आज भाव भी बढ़ गए दरख्तों के
सड़क के किनारे खड़े रहकर जो
तमाशाई दुनिया को देखते है चुपचाप ...
क्या चिड़िया ?? क्या जानवर ?? क्या इंसान ???
उसकी छाँव में आज सब महेमान ....
वैसे तो बारिश के दिनों में अक्सर आते है
थोड़ी देर ठहर तो जाते है ...
पर सुनसान सड़कों को डामर से पिघलते देखा है ,
चप्पल भीतर भी फफोलों को उभरते देखा है ,
तब वो पसीने की बूंदो से मेरी जड़ों को
सींचते हुए रुमाल जटकते है ,
मीठे पानी को थोड़ा नमकीन सा कर देते है .....
रुक कर थोड़ी देर चले बाशिंदों को क्या पता ???!!!
मेरी टहनी का एक एक पत्ता तुम्हारी छाँव के लिए
जलता रहता है दिनभर सूरज से लड़ते हुए .....
गर्मी के गहने पहनकर सड़कों पर ....
आज भाव भी बढ़ गए दरख्तों के
सड़क के किनारे खड़े रहकर जो
तमाशाई दुनिया को देखते है चुपचाप ...
क्या चिड़िया ?? क्या जानवर ?? क्या इंसान ???
उसकी छाँव में आज सब महेमान ....
वैसे तो बारिश के दिनों में अक्सर आते है
थोड़ी देर ठहर तो जाते है ...
पर सुनसान सड़कों को डामर से पिघलते देखा है ,
चप्पल भीतर भी फफोलों को उभरते देखा है ,
तब वो पसीने की बूंदो से मेरी जड़ों को
सींचते हुए रुमाल जटकते है ,
मीठे पानी को थोड़ा नमकीन सा कर देते है .....
रुक कर थोड़ी देर चले बाशिंदों को क्या पता ???!!!
मेरी टहनी का एक एक पत्ता तुम्हारी छाँव के लिए
जलता रहता है दिनभर सूरज से लड़ते हुए .....
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