6 अक्तूबर 2014

आहट

ये शायद कोई तिनके के गिरने की आहट है ,
ये तिनका पंछीके पंख सा हल्का है ,
इस सन्नाटे में उसकी आवाज भी आती है  …
इतना सन्नाटा है भीतरकी गली में ,
जिसका नाम है पता है पर वहां मैं रहता नहीं  ....
बेख़ौफ़ होकर घूमता रहता हूँ वीराने में ,
कोई डर नहीं बियाबान जंगलमें ,
रेगिस्तान की तपती हुई बालू
न जला सकी कभी मेरे नंगे पैरों को भी  ....
बस क्या वजह है मेरे कमरे के उस कोने में ,
एक आयना पड़ा हुआ है सालोंसे ,
उस पर गर्दको पोछता हूँ हर रोज़ सुबह ,
फिर भी खुदके अक्सको देखने से डरता हूँ में  … 

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