दिन महीने साल
सरकते है रेतघड़ी से ,
जैसे वक्त फिसल रहा है मुठ्ठीसे ,
चिकनी सी चाहते मुठ्ठी पर मलकर
चाहा की वक्त थोड़ी देर चिपक जाए वहीँ पर ,
पर ये तो वक्त है ,
हर बन्धनसे मुक्त होकर फिसलता रहता ,
हर वक्त चेहरे पर एक लकीर छोड़ जाता है ,
अपने निशां यादोँ में छोड़ जाता है ,
तस्वीरों का एक पूरा आल्बम है कैद ,
वो सब कुछ छोड़कर हमारे पास ,
एक जोगीसा बनकर
घडीका संसार छोड़ जाता है ,
वक्त हमें भुलाता है ,
वक्त हमें याद कराता है ,
हमें उम्रकी देहलीज पर छोड़कर ,
वो तो सदाबहार बन जाता है …
सरकते है रेतघड़ी से ,
जैसे वक्त फिसल रहा है मुठ्ठीसे ,
चिकनी सी चाहते मुठ्ठी पर मलकर
चाहा की वक्त थोड़ी देर चिपक जाए वहीँ पर ,
पर ये तो वक्त है ,
हर बन्धनसे मुक्त होकर फिसलता रहता ,
हर वक्त चेहरे पर एक लकीर छोड़ जाता है ,
अपने निशां यादोँ में छोड़ जाता है ,
तस्वीरों का एक पूरा आल्बम है कैद ,
वो सब कुछ छोड़कर हमारे पास ,
एक जोगीसा बनकर
घडीका संसार छोड़ जाता है ,
वक्त हमें भुलाता है ,
वक्त हमें याद कराता है ,
हमें उम्रकी देहलीज पर छोड़कर ,
वो तो सदाबहार बन जाता है …
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर .
नई पोस्ट : इतिहास के बिखरे पन्ने : आंसुओं में डूबी गाथा
इस पोस्ट की चर्चा, रविवार, दिनांक :- 05/10/2014 को "प्रतिबिंब रूठता है” चर्चा मंच:1757 पर.
जवाब देंहटाएंवक्त किसी की नहीं सुनता -उसका अपना ही राग है !
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुति ...
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लॉग पर भी आपका स्वागत है.
एक बार ज़रूर पधारिए.
http://iwillrocknow.blogspot.in/
सुंदर प्रस्तुति ...
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लॉग पर भी आपका स्वागत है.
एक बार ज़रूर पधारिए.
http://iwillrocknow.blogspot.in/
Bahut sunder prastuti ....!!
जवाब देंहटाएंचिकनी सी चाहते मुठ्ठी पर मलकर
जवाब देंहटाएंचाहा की वक्त थोड़ी देर चिपक जाए वहीँ पर …. ekdam anoothi kalpana … bahut sundar evam prabhavshali rachna …